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कई बार जब हम किसी बीमा कंपनी या किसी वित्तीय संस्थान में लोन लेने या अन्य काम से जाते हैं, तो उनकी तरफ से हमेशा स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल, नियम एवं शर्तों का पालन किया जाता है. ऐसे में इन सभी बीमा कंपनियों या वित्तीय संस्थानों के लिए बनाए गए कानून एवं धाराओं की जानकारी भी हमें जरूर होनी चाहिए. इसी वजह से हम आज आपके लिए भारतीय कंपनी अधिनियम के अनुसार बनाए गए लोन एक्ट 38 के बारे में जानकारी बताने जा रहे हैं.
Bima Adhiniyam Me Kitni Dharayen Hain
जानकारी के अनुसार हम आपको बताना चाहते हैं कि बीमा अधिनियम में लगभग 120 धाराएं एवं 8 अनुसूचियां उपलब्ध है. कंपनी अधिनियम 1956 के अनुसार भारतीय कंपनी को सिर्फ भारत देश में ही अपना काम करने की अनुमति दी गई है.
Loan Act 38 of India Ki Paribhasha
इस नियम को संक्षिप्त रूप में “बीमा अधिनियम 1938” के नाम से जाना जाता है. इस नियम का विस्तार समूचे भारत देश में है. अर्थात भारत देश में फैले हुए सभी वित्तीय संस्थानों के लिए यह नियम लागू होता है. ये अधिनियम भारत सरकार के द्वारा बनाए गए है.
इस नियम की परिभाषा में बताए गए ‘प्राधिकरण’ अर्थात बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण के अधिनियम 1999 के तहत स्थापन किया गया भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण अर्थात IRDAI होता है.
IRDAI का मुख्यालय हैदराबाद में स्थित है. इस एजेंसी का उद्देश्य पॉलिसी धारकों के हितों की सुरक्षा करना होता है. साथ ही यह एजेंसी भारत में फैले हुए सभी बीमा कंपनियों के वित्तीय मामलों एवं उनके शोध क्षमता मामलों की निगरानी करती है.
Loan Act 38 of India Ke Adhiniyam
इस नियम में बताया गया पॉलिसी धारी व्यक्ति अर्थात वह व्यक्ति होता है, जिसने किसी बीमा कंपनी की तरफ से पॉलिसी ली होती है.
इस नियम में बताई गई धनराशि के डिवेंचर या प्रतिभूतियों के लिए किसी प्रेसिडेंसी नगर या नगर सुधार न्यास की ओर से केंद्रीय अधिनियम या राज्य के अधिनियम के प्राधिकार निर्गमित होते हैं.
इस नियम में कानून द्वारा स्थापित किए गए निगम के शेयर जिनमें मूलधन के प्रतिदाय एवं लाभांश के अदायगी की केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा गारंटी दी जा सकती है.
इसमें ऐसी प्रतिभूतियां भी शामिल होती है, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा निर्गमित किया जाता है. इनके मूल धन एवं ब्याज पर पूर्णतः गारंटी होती है. साथ ही केंद्र सरकार की अधिसूचना द्वारा इनके प्रयोजनों के लिए प्रतिभूतियां अनुमोदित की जा सकती है.
इस नियम में लेखा परीक्षक वह व्यक्ति होता है, जो कंपनियों में लेखा परीक्षक का कार्य करता है. वह चार्टर्ड अकाउंटेंट अधिनियम 1949 के अधीन होता है.
इस अधिनियम में बताया गया बीमा नियंत्रक ऐसा अधिकारी होता है, जो केंद्र सरकार के बनाए गए जीवन बीमा निगम अधिनियम 1956 या IRDAI के अधिनियम 1999 द्वारा अधीन होता है. वह प्राधिकरण में अपने कर्तव्य एवं शक्तियों का पालन करने के लिए नियुक्त किया गया होता है.
इसी के साथ ही भारतीय बीमा कंपनी अर्थात वह कंपनी होती है, जो कंपनी के अधिनियम 2013 के द्वारा पब्लिक कंपनी के रूप में बनाई गई होती है.
कोई विदेशी कंपनी से अर्थ यह होता है कि वह भारत से बाहर किसी भी देश के कानून के अधीन होकर स्थापित की गई कोई निकाय या कंपनी होती है.
इस नियम में जीवन बीमा कारोबार को लेकर मानव के जीवन बीमा की संविदाये करना अभिप्रेत होता है. ऐसे में उसके आकस्मिक घटना में मृत्यु होने पर उसकी रकम का आश्वासन दिया जाता है.
इस संबंध में उसके जीवन में प्रीमियम के शर्त पर भी अगर कोई संविदा है, तो वह भी इसमें मौजूद हो सकती है.
बताए गए नियमों में किसी भी विशिष्ट व्यक्ति या व्यापार में अगर नियोजन किया जाता है तो उस इंसान के आश्रित की सहायता एवं भरण पोषण के लिए अधिवार्षिक भत्ता दिया जा सकता है.
लोन एक्ट 38 के अनुसार राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण अर्थात कंपनी के अधिनियम 1956 की धारा 10 के मुताबिक गठन की हुई राष्ट्रीय कंपनी होती है.
इस नियम में प्राइवेट कंपनी एवं पब्लिक कंपनी का भी उल्लेख किया गया है.
नियम के अनुसार प्रतिभूति अपील प्राधिकरण अर्थात भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड अधिनियम 1992 के अनुसार स्थापन किया हुआ अपीलीय अधिकरण होता है.
केंद्र सरकार के राजपत्र की अधिसूचना में निर्दिष्ट किए गए अधि वार्षिक भत्ते एवं कारोबार के प्रयोजन में कोई साधारण बीमा प्रयोजन हो सकता है.
इसमें मौजूद अधिनियम विशेष आर्थिक जोन में केंद्र सरकार के अधिसूचना द्वारा लागू हो सकते हैं. साथ ही भारतीय बीमा कंपनी के सोसाइटी में निर्दिष्ट किसी भी निगमित निकाय के लिए यह नियम लागू नहीं हो सकता.
Loan Act 38 Ke Tahat Company Ka Registration
अगर कोई व्यक्ति अपना बीमा कारोबार करने के लिए नियंत्रक से रजिस्ट्रेशन करते हुए प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं करता है, तो वह व्यक्ति भारत में बीमा कारोबार शुरू नहीं कर सकता.
IRDAI के अधिनियम अनुसार इस संस्था के पहले या इसके बाद तक भी वो अपना बीमा कारोबार कर रहा होता है. लेकिन उसके पास अगर कोई रजिस्ट्रेशन किया हुआ प्रमाण पत्र नहीं है, तो ऐसे में उसे 3 माह के भीतर अपने कारोबार के लिए रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र ले लेना चाहिए.
रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन या जांच करने के साथ अगर नियंत्रक संतुष्ट हो जाता है, तो वह आवेदन करने वाले की वित्तीय स्थिति एवं उसका स्वरूप देखता है.
इसी के साथ ही आवेदन करने वाले का उपलब्ध कारोबार एवं उसकी पूंजी का संगठन भी उसके लिए पर्याप्त होना चाहिए. आवेदन करने वाले को IRDAI द्वारा लगाए गए सभी अधिनियमों का पालन करना होगा.
इन सभी नियमों की होने के बाद ही नियंत्रक द्वारा आवेदनकर्ता को रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र दिया जा सकता है.
अगर किसी कारण से आवेदन करने वाले के रजिस्ट्रेशन को नियंत्रक के द्वारा इंकार कर दिया जाता है, तो ऐसे में वह 30 दिन के अंदर प्रतिभूति अपील अधिकरण में अपने आवेदन की अपील भी कर सकता है.
Loan Act 38 Ke Niyamon Ka Palan
अगर कोई बीमाकर्ता किसी भी नियम की पूर्ति नहीं करता है, या रजिस्ट्रेशन की प्रोसेस को पूरा नहीं करता है, तो उसके रजिस्ट्रेशन को निलंबित या रद्द कर दिया जा सकता है.
ऐसे में अगर वह अपने दायित्व में बताई गई रकम से ज्यादा के नियमों का पालन नहीं कर सकता है, तो ऐसे में उसके रजिस्ट्रेशन को पूरी तरह रद्द किया जा सकता है.
अगर आवेदन करने वाले को न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित कर दिया गया है, तो ऐसे में भी प्राधिकरण के द्वारा उसकी रजिस्ट्रेशन प्रोसेस पूरी नहीं की जा सकती है.
अगर बीमाकर्ता का कारोबार किसी अलग व्यक्ति को सौंपा गया है या किसी दूसरे के कारोबार में उसका कारोबार पूरी तरह से मर्ज किया गया है. इस स्थिति में भी नियंत्रक को उसका रजिस्ट्रेशन निलंबित करने का पूरा अधिकार होता है.
बताए गए बीमा प्राधिकरण के नियमों में बदलाव हो सकते हैं. साथ ही इन नियमों में कई सारे नियम जोड़े भी जा सकते हैं.
हमें आशा है कि अब आपको लोन एक्ट 38 या बीमा अधिनियम 1938 के बारे में पूरी जानकारी हो चुकी होगी.
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